संप्रेषण – राकेश रोहित


परदे पर कोई भावप्रवण दृश्य चल रहा था. वह भावातिरेक में बुदबुदाया, ” सिनेमा संप्रेषण का सशक्त माध्यम साबित हो सकता है.” अचानक इंटरवल हो गया. परदे पर एक रील चमकने लगी- “धूम्रपान निषेध.” और वह समझ नहीं पा रहा था कि उसके सिगरेट के धुंए से मुझे खांसी हो रही थी. ooo

 

 

आँसू – राकेश रोहित


वह शायर नहीं था, पर उसकी झील- सी आँखों में डूब गया. … और उसकी झील- सी आँखें समंदर बन गईं, जिनसे हर वक्त नमक रिसता रहा. ooo

संतुलन – राकेश रोहित


लड़की के पांव में जन्म से कुछ लंगड़ापन था. डॉक्टर ने कहा – ठीक हो सकता है, पर खर्च काफी होगा. पिता ने कुछ सोचा, घर के अर्थ-संतुलन के बारे में और धूम-धाम से उसकी शादी कर दी. शादी तो करनी ही थी. अब लड़के वाले पांव का इलाज खुद करवा लेंगे.

एक दिन लड़की चूल्हे के पास अपना संतुलन  संभाल न सकने के कारण गिर पड़ी और…. ooo

खुशबू – राकेश रोहित


“मुझे कल गांव जाना होगा,” मैंने अपनी पत्नी को सूचना दी.

“क्यों ? अभी पिछले सप्ताह तो गए थे.”

“हां, पत्रिका के कवर के लिए फूलों के कुछ स्नैप – शॉट लेने हैं.”

“तो, फूलों के लिए गांव जाओगे! मिस डिसूजा के पास तो एक-से-एक प्लास्टिक के फूल हैं – बिल्कुल असली दीखते हैं.”

“हां ठीक ही तो है, तस्वीर से कौन-सी खुशबू आनी है.”- मैंने खुद को समझाया जैसे. ooo

सात आदमी को छूओ – राकेश रोहित


यह प्रार्थना का समय था. स्कूलों की घंटियां बज चुकी थीं और बच्चे कतार में खड़े थे. मैंने उन्हें देखा. और मुझे वितृष्णा हुई उस भाव के प्रति जिसमें दुनिया को बचा लेने की गंध थी. तभी मेरे सामने एक छोटा बच्चा आ गया; दबे कदम, धीरे-धीरे. और प्रार्थना होती देख वह असहज हो गया. उसका चेहरा परेशान हो रहा था. वह थोड़ा हटकर एक कोने में खड़ा हो गया, जहां प्रार्थना से अलग एक बच्ची खड़ी थी. बच्ची ने अपने बस्ते को संभाला और उसे देख मुस्कराई. फिर उसने बच्चे से कुछ कहा.  बच्चे ने चौंक कर पीछे देखा, पर वहां कोई न था. बच्ची खुश हो गई. उसने अपनी नन्हीं हथेलियों से हल्की ताली बजाई और बोली – ” छका दिए, सात आदमी को छूओ… सात आदमी को छूओ!”  बच्चा भी अचानक प्रसन्न हो आया था. उसे प्रायश्चित करना था – झूठ को सच समझने का, सात आदमी को छूकर. उसने बच्ची से शुरुआत की और उसे छूकर चिल्लाया- एक! फिर वह दौड़ गया. सामने दो बच्चे कांच की गोली से खेल रहे थे … दो-तीन, उसने गिना. मैं उनके पास आ रहा था और मुझे लग रहा था जैसे मैं उसे खेल में शामिल हो गया हूँ. एक खुशी मेरे अंदर फूट रही थी. बच्चा सड़क पर इधर-उधर दौड़ रहा था. उसने कागज चुन रहे दो बच्चों को गिना. चार-पांच. अब सड़क पर कोई न था और बच्चा इधर-उधर देखता परेशान हो रहा था. मुझे लगा अब वह मुझे छूएगा और तब केवल एक की कमी रह जाएगी. मैंने अपनी चाल कम कर दी ताकि वह मुझे छू सके. तभी एक लड़का सर पर टोकरी रखे साग बेचता उधर से निकला. उसने उसे छूआ – छ:, और फिर मेरे पीछे दौड़ कर वह मुझे छू कर चिल्लाया – सात! दूर खड़ी बच्ची खिलखिलाकर हँस पडी. एक उत्फुल्लता उसके चेहरे पर थी. सात आदमी को छूओ, उसने तालियां बजाकर कहा. अब यह खेल मुझे जारी रखना था. पर मैं धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था. बच्चे धीरे से कक्षा में लौट रहे थे. और खेल का सिरा मुझ तक खिंचता-खिंचता टूट  गया था. एक खिन्नता मेरे आगे खन्न से बिथर गई थी. सामने धूप तेज हो रही थी और एक आवाज अब भी मेरे पीछे थी- सात आदमी को छूओ. ooo

हस्तांतरण – राकेश रोहित


वर्षा के जमे पानी में मेरी नाव तैर रही थी. मैं उसे देखने में मग्न था. तभी पास का एक बच्चा पानी में उछलता-कूदता आगे बढ़ा. उसने हाथ बढ़ाकर नाव को उठा लिया और किनारे लाकर फिर से तैरा दिया. नाव तैरती रही. अब वह ताली बजकर हँस रहा था और मैं गुमसुम खड़ा था. ooo

समझौता – राकेश रोहित


वे लड़ते हुए अचानक ठहर गए. “यहां कोई देख लेगा,” उनमें से एक ने कहा. “चलो हम मैदान में चलें.” ooo

स्वर्ग से दूर – राकेश रोहित


” शादी के बारे में तुम्हारा विचार क्या है?” लड़के ने पूछा तो लड़की ने कहा, “कुछ खास नहीं. मैं इसे जरूरी नहीं समझती प्रेम के लिए.”

“अफ़सोस तुम ऐसा सोचती हो, फिर भी मैं तुमसे प्यार करता हूँ.”

“… और जब स्वप्न-स्वर्ग में उन्होंने वर्जित फल चखे तो लड़की शादी करना चाहती थी और लड़के का विचार बदल गया था! ooo

स्वप्न – राकेश रोहित


औरत को अचानक भान हुआ, यह खूबसूरत दुनिया उसके लिए बनी है और प्रतिपल को उसको हिस्सेदारी अपेक्षित है. उसकी आँखें खुल गईं.

पुरुष ने कहा, “प्रिये, तुम कितना सुन्दर स्वप्न देख लेती हो,” और वह मुस्करा कर उसकी बांहों में सो गई. ooo

ईश्वर ने शोक मनाया – राकेश रोहित


ईश्वर ने शोक मनाया. वह ईश्वर, ईश्वर नहीं है. हमारे मोहल्ले में रहता है और हरी सब्जियां बेचता है. हम सब उसे ईश्वर से ज्यादा हरी सब्जी से जानते हैं. मैं उसे ज्यादा नहीं जानता, पर इतना अवश्य कि ईश्वर है और हैं सब्जियां हरी-हरी. लेकिन एक शाम वह मेरे पास पहुंचा- “सब्जियां खरीद लीजिए भइया, हरी है.”

मुझे अचरज हुआ. मेरे पास कभी नहीं आता था वह. मैंने कहा- “ईश्वर तुम मुझे नहीं जानते लेकिन मेरी मजबूरी समझ सकते हो. मुझे खाना बनाना आता नहीं. पका-पकाया लाता हूँ, वही खाता हूँ.” पर वह बोले जा रहा था – “खरीद लीजिए हरी हैं. एक भी नहीं बिकीं. मोहल्ले में किसी ने नहीं खरीदा. आज मोहल्ले में शादी है. सभी दावत में शरीक होंगे. इधर मेरी माँ मर गई है. वही बोती, वही उगाती थी सब्जियां. मैंने सोचा आज भर बेच दूं कि फिर इतनी हरी न होगी सब्जियां.”

मुझे दुःख हुआ कि उसने शोक नहीं मनाया और बेचने चला आया सब्जियां. मैंने देखा उसके चेहरे की रंगत उतर रही थी और खतरे में था सब्जियों का हरापन. उधर चुप थे पर्यावरण विशेषज्ञ और मंत्रीगण. मैं ना करता रहा पर ईश्वर छोड़ गया मेरे घर हरी सब्जियां, फिर वह कभी पैसे लेने नहीं आया. अब भी रखी हैं वे हरी सब्जियां कि जब न होंगी सब्जियां और न होगा ईश्वर, मैं दराज से निकालूँगा सूखी भिन्डी कि कहूँगा था इसमें हरापन, कि था कभी ईश्वर! जिसने शोक मनाया. ईश्वर ने शोक मनाया. ooo